Agni Manda

जठराग्नि(Agni Manda) का मंद पड़ना मुख्य कारण होता है, जठराग्नि (Agni Manda) निम्न कारणों से मंद पड़ जाती है

  • एक जैसा भोजन करते रहना, जिस कारण जीभ दूसरे रसों का स्वाद लेना भूल जाती है, जबकि मानव जीभ में 10000 स्वाद कलिकाएँ होती हैं।
  • असमय भोजन करते रहना, इससे शरीर के पाचक एंजाइम कन्फ्यूज और सुस्त पड़ जाते है।
  • तीव्र भूख या भूख लगने पर भोजन न करना, उसकी जिगह पर दूसरी चीजें खाते रहना, इससे जठराग्नि प्रकुपित हो जाती है।
  • भोजन को सम्मान न देना, जिस कारण भूख विकृत होकर चेहरा भी खराब होने लगता है।
  • तनावपूर्ण स्थिति में भोजन करते रहना।
  • भोजन के शुरू और अंत मे अत्यधिक पानी पीना।
  • बासी, ठंडा और विकृत भोजन को करते रहने से।
  • भोजन में बाल, नाखून, पसीना या तामसिक सूक्ष्म कीट का प्रेवेश होना।
  • गरिष्ठ या भारी भोजन करते रहने और व्यायाम या शारीरिक मेहनत न करने से, जठराग्नि मंद(Agni Manda) पड़ने लगती है।
  • मस्तिष्क और आँते एक दूसरे के लिये भाई बहन होते है। जब हमारा मस्तिष्क किसी विशेष व्यक्ति या वस्तु के प्रति भावनात्मक लगाव पैदा कर लेता है, तो आँते भी मस्तिष्क की भांति सोचना शुरू कर देती है, जिस कारण भूख खत्म हो जाती है। मस्तिष्क शरीर के लिये पर्याप्त न्यूट्रिशन सांसों के माध्यम से प्राणों से लेना शुरू कर देता है। इस तरह से शरीर लंबे समय तक भूखा प्यासा जीवित रह लेता है।
  • हमारे गलत कर्मो के कारण, पूर्व जन्म के कर्म और इस जन्म के कर्म सामने आने शुरू हो जाते है, जिस कारण जठराग्नि का मंद पड़ना आवश्यक बन जाता है, ताकि शरीर मे रोग पैदा हो सके( इसको हम अज्ञात कारण भी कह सकते है)

लक्षण

  • इसमे भूख कम लगती है, खट्टी डकारें आती है, गला जलता है, छाती (अमाशय) में भारीपन रहता है, कभी कभी पेट मे दर्द रहता है, उल्टी का मन, शरीर मे आलस्य, कमज़ोरी रहती है।

मानसिक लक्षण 

  • किसी व्यक्ति, वस्तु से अधिक लगाव से, तनावपूर्ण स्थिति में रहने से।

पूर्णधेनू योग

  • सुबह 5 मिंट कपालभाति करें, नाभि को संतुलित करने हेतु तीन अवर्ति नौकासन की करे।

मानसिक विचार हेतु

  • आयुर्वेद में भोजन को ब्रह्म या परमात्मा कहा है। आपको जहाँ भी भोजन करना सबसे अच्छा लगता हो, उसी स्थान की मानसिक कल्पना करके खाना खाने शुरू करना चाहिये, इससे लार स्वाद ग्रंथि या मुँहू में पानी बनेगा, साथ ही अन्न या परमात्मा का आनंद भी मिलेगा। इसी आनंद से प्राण तत्व शरीर मे आ जाते है, जिससे शरीर खुद को अधिकतम सीमा तक स्वास्थ कर लेता है।
  • भोजन की थाली के चारो तरफ (घडी की दिशा में ) जल घुमाये, ताकि सूक्ष्म अनिष्ट शक्तिया बैक्टीरिया और वायरस भोजन को माध्यम बनाकर पेट मे न जा सके।
  • भोजन करते वक्त सुखासन( पालथी लगाकर बैठना) रीढ़ की हड्डी सीधी रहे, ताकि सुषुम्ना नाड़ी के जाग्रत होने से हमे वायुमंडल से चैतन्य का स्रोत प्राण तत्व भोजन में अधिक से अधिक प्राप्त किये जा सके। मनुष्य का सुखासन में भोजन करना नैसर्गिक स्वभाव रहा है। भोजन करते समय बातचीत न करें, अंत मे तीन बार कुल्ला करें।

परहेज़

  • तली चीजे, बाजारू चीजें, डब्बा बंद चीजे, मैदा, मिठाई, अति जल पान, उड़द, जामुन, दूध, गरिष्ठ भोजन न ले।

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सेवन विधि – 

  • खाना खाने से आधा घंटा पहले अजवाइन अर्क 15 साल से छोटे बच्चों को 5 ml + 10 ml पानी मिलाकर ले, वयस्कों को 15 ml अर्क + 15 ml पानी मिलाकर प्रातः व सांय दोनो वक़्त ले।
  • खाना खाने से पांच मिनट पहले छोटा सा अदरक का टुकड़ा ले + सेन्दा नमक + नींबू का रस मिलाकर खाये।
  • खाने के मध्य में 20 ml तक्रारिष्ट या 50 ml छाछ सेन्दा नमक युक्त ले।
  • खाना खाने के तुरंत बाद सौंफ ले।
  • रात को सोने से पहले नाभि में घी या तेल डाले।

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Ritin Yogi