मैं कामना मैं वासना

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मैं कामना मैं वासना ,अपराध का मैं पुण्ड हूं।
मैं क्रोध हूं मैं लोभ हूं, मैं निरर्थक घमण्ड हूं।।

मैं रागी मैं द्वेषी ,मैं मोह से भरा हुआ।
मैं दुरात्मा मै दुष्ट हूं, दग्ध हूं जरा हुआ।।

मैं दुखी मैं चिन्तित ,मैं भयभीत हूं।
मैं तड़पता मैं रोता,न बन सका किसी का मीत हूं।

मैं धिक्कार मैं बेकार हूं , निन्दा का हू अधिकारी।
मैं प्रेम से तो शून्य हू, क्रूरता का हूं पुजारी।।

मैं कष्ट से भरा हूं ,मैं रूष्ट से भरा हूं।
मैं मांग से भरा हूं, मैं स्वांग से भरा हूं।।

इतना सब होकर भी मैं संतुष्ट हूं।
मैं मनुष्य हूं चूंकि मैं मनुष्य हूं।।
चैतन्यतीर्थ

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