Wel-Come to Purndhenu Panchgavya Aushadhalaya
यहां हर कोई आत्महत्या ही कर रहा है, जीवन तो भला किसने जिया, शायद करोड़ों में कोई एक या दो। जिसे तुम आत्महत्या कहते हो, जिसमें मनुष्य एक क्षण में अपने प्राण दे देता है। दुख को छोड़ने और सुख को पाने की इच्छा से वह सोचता है कि शायद एक बार में ही प्राण त्याग दूंगा सारे दुख समाप्त और करने के बाद सुखी सुख है। क्योंकि मरने के बाद किसने जीवन देखा सुख ही मिलेगा शांति ही मिलेगी। दूसरी और वह लोग हैं जो हर क्षण धीरे-धीरे आत्महत्या करते हैं आत्महत्या की ओर बढ़ रहे हैं एक व्यक्ति विष खाकर जहर खाकर आत्महत्या कर लेता है एक बार में बिना किसी विशेष पीड़ा के एक बार का दीपक की लों की तरह समाप्त हो जाना बूझकर। दूसरा वह है जो हर दिन अपने अंदर जहर डाले रहा है, सुख की इच्छा से सुख मिलेगा सोचकर कभी वह चीनी के जहर को अंदर डाल रहा है स्वाद के लिए। कभी वह मिलावटी पदार्थों को खाये जा रहा है सुख के लिए। कभी वो जंक फूड खाता है स्वाद के लिए कभी वह फास्ट फूड खाता है जल्दी के लिए और न जाने ऐसे कितने विष अपने अंदर धीरे-धीरे बढ़ाता चला जाता है। यहां बात ऐसी नहीं है कि मनुष्य नहीं है, जानता तो वह भी है कि जहर है, और हर दिन उस जहर को धीरे-धीरे अपने अंदर ले रहा है। मेरे देखे वह आदमी ज्यादा बुद्धि हीन है जो धीरे-धीरे जहर को ले रहा है मरना तो उसे भी है, और मरना उसको भी है जिसे आत्महत्या करके मारना है खत्म करता है। बात को है कि सुख की अभिलाष से नहीं मर रहा है। बड़ा दर्द है उसको निकालने के लिए आदमी आत्महत्या करता है। पर ये सारा संसार जो एक-एक क्षण हर दिन हर रात हर सप्ताह हर महीने हर वर्ष धीरे-धीरे अपने अंदर जहर भरता जाता है, टॉक्सिक भरता जाता है कोई सीमा नहीं न जाने किस किस तरह के पदार्थ। मद्य और मांस तो एक तरफ रहे। अब तो जिन पदार्थों का कोई प्रकृति में अस्तित्व भी नहीं प्रकृति भी जिनको अपने अंदर देने से अस्वीकार कर दे रही है उगलकर बाहर फेंक दे रही है उसको उनसे अपने अंदर डाले जा रहा है। कूड़ेदान से भी बदतर मनुष्य का यह पेट हो चुका है, मनुष्य कुछ भी डालने को तैयार है। स्वाद के लिए, सुख के लिए, जल्दी के लिए, जल्दबाजी के लिए। और हालात तो तब बुरी हो जाती है जब मनुष्य केवल देखते ही करता है, ना स्वाद आता है, ना जल्दी है, ना सुगंध है या सूख का नामों निशान है। क्या? बस सब लोग कर रहे हैं इसलिए, आज का नया जमाना कर रहा है इसलिए, मुझे भी करना है इसीलिए पीछे दौड़ता है जो वह कहते हैं वह यह खाता है जो वह देखते हैं वही देखा है हर तरफ से अपने अंदर से जहर जहर ही जहर विष ही विष भरे जा रहा है और इस विष को कभी बाहर भी नहीं निकलता। इस विष का विस्फोट होता है एक दिन और मनुष्य कहता है अब मैं रोगी हो गया अब मैं दर्द में हूं। दर्द बढ़ता जाता है फिर भी मनुष्य जहर को भरता जाता है। जहर की काट के लिए इन दवाईयों का जहर और भर लेता है।
बीस-तीस साल दर्द से हर दिन मरता है और फिर एक दिन जहर के व्यापारियों को जब लगता है कि और जहर अब नहीं दिया जा सकता, तब वो कहते हैं कि अब आप लाईलाज है। तब मनुष्य जीवन के लिए रोता है। किंतु उपाय कोई दर्द से कहार कहार कर मरता है। आप लोग सोचते हो कि वो मृत्यु हो।
नहीं वो मृत्यु कदापि नहीं , मृत्यु को लांखो को किसी एक को ही नसीब होती है। यह तो कोरी आत्माहत्या है आत्माहत्या जो सुख की अभिलाषा से आरंभ होकर दर्दनाक असह्य पीड़ा में परिणति आओ प्राप्त होने वाली तीस- चालीस सालों में मिलने वाली आत्महत्या।
मानों किसी ने फांसी का फंदा लगा लिया हो पर तीस-चालीस साल तक तड़पता रहे और दम घुटता ही रहे एक हल्की सांस आए और फिर दम घुटता रहे और ऐसे सालों की घुटन के बाद उसके प्राण छूटे।
बस यही तुम्हारा जीवन हो चला है।
मृत्यु नहीं दर्दनाक आत्महत्या: सुख की अभिलाषा में
चैतन्यतीर्थ
पूर्णधेनु योगशोध संस्थान