Wel-Come to Purndhenu Panchgavya Aushadhalaya
ब्रम्हा जी ने सृष्टि के निर्माण से पहले एक लाख श्लोक और एक हजार अध्यायों वाली ब्रह्म संहिता की रचना भूलोक में रहने वाले मनुष्य की आयु की अल्पता और अस्वस्थता का विचार कर आयुर्वेद का निर्माण किया। सतयुग में और आज जंगलों में रहने वाले पशु पक्षियों को आयुर्वेद की कोई आवश्यकता नही होती है। ब्रम्हा जी ने त्रेतायुग, द्वापरयुग और मुख्यतः कलयुग को ध्यान में रखकर आयुर्वेद की रचना स्वास्थ सृष्टि को रखने हेतु की। इससे यह सिद्ध होता है, मनुष्य के स्वास्थ का प्रभाव ब्रम्हा जी पर पड़ता है। हमारा पूर्ण स्वास्थ्य प्रकृति में है, मनुष्य निर्मित दवाओं में नही है। आयुर्वेद को गहन से पढ़ा जाए तो प्रकृति के नियम और प्राकृतिक आहार विहार है।