Wel-Come to Purndhenu Panchgavya Aushadhalaya
नाभि मेें लंबे समय तक अव्यवस्था चलती रहती है तो पेट में विकार के अलावा व्यक्ति के दॉतों, नेत्रों व बालों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ने लगता है। दॉतों की स्वाभाविक चमक कम होने लगती है। यदा कदा दॉतों में पीड़ा होने लगती हैै। नेत्रों की सुंदरता व ज्योति क्षीण होने लगती है। बाल असमय सफेद होने लगते है। आलस्य, थकान, चिड़चिड़ाहट, काम में मन न लगना, दुश्चिंता, निराशा, अकारण भय जैसी नकारात्मक प्रवृत्तियों की उपस्थिति नाभि चक्र की अव्यवस्था की उपज होती है।
नाभि स्पंदन से रोग की पहचान का उल्लेख हमें आयुर्वेद व प्राकृतिक उपचार चिकित्सा पद्वतियों में मिल जाता है। परंतु इसे दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि हम हमारी अमूल्य धरोहर को न संभाल सके।
पहचान
- यदि नाभि का स्पंदन उपर की तरफ चल रहा है यानि छाती की तरफ तो अग्न्याष्य खराब होने लगता है। इससे फेफड़ों पर गलत प्रभाव होता है। मधुमेह, अस्थमा, बोंकाइटिस जैसी बीमारियां होने लगती है।
- यदि यह स्पंदन नीचे की तरफ चली जाए तो पतले दस्त होने लगते है।
- यदि बाई ओर खिसकने से शीतलता की कमी होने लगती है, सर्दी जुकाम, खॉसी, कफजनित रोग जल्दी-जल्दी होती है।
- दाहिनी तरफ हटने पर लीवर खराब होकर मंदाग्नि हो सकती है। पित्ताधिक्य, एसिड, जलन आदि की शिकायतें होने लगती है। इससे सूर्य चक्र निष्प्रभावी हो जाता है। गर्मी-सर्दी का संतुलन शरीर में बिगड़ जाता है। मंदाग्नि, अपच, अफरा जैसी बीमारियॉ होने लगती है।
- यदि नाभि पेट के उपर की तरफ आ जाए यानी रीढ़ के विपरीत, तो मोटापा हो जाता है। वायु विकार हो जाता है। यदि नाभि नीचे की ओर रीढ़ की हड्डी की तरफ चली जाए तो व्यत्ति कुछ भी खाए, वह दुबला होते चला जाएगा। नाभि के खिसकने से मानसिक एंव आध्यात्मिक क्षमताएॅ कम हो जाती है।
- नोट यदि नाभि मध्यमा स्तर से खिसककर नीचे रीढ़ की तरफ चली जाए तो ऐसी स्त्रियॉ गर्भ धारण नहीं कर सकती। अकसर यदि नाभि बिलसुल नीचे रीढ़ की तरफ चली जाती है, तो फैलोपियन ट्यूब नहीं खुलती और इस कारण स्त्रियॉ गर्भधारण नहीं कर सकती।