गैस (कब्ज़/आनाह/आटोप) Constipation

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पेट फूल जाता है, इसमें दर्द उत्पन्न होकर समस्त शरीर को व्यकुल एवं बेचैन कर देता है। अधोवायु के रूप में वायु का न निकल पाना constipation है, आगे जाकर यही कब्ज के रूप में परिवतिर्त हो जाती है। वात के बिगड़ जाने के कारण मल और वायु का बाहर न निकल पाने को constipation कहते है। इसमे मल बहुत टाइट होता है, कब्ज को सुखा मल भी कहा जाता है। सरल भाषा मे कहा जाये 36 घंटों में मल न हो तो उसे कब्ज कहा जाता है, अगर स्टूल ड्राई है, स्टूल पास करने के बाद भी मल बडी आँतो में रुका हुआ है तो कब्ज है, यही पड़ा पड़ा सड़ता रहता है।

Constipation क्यों होता है……

  • वात के कारण आँतो में खुश्की हो जाती है, हार्ड मल हो जाता है।
  • गंदा भोजन करने से।
  • समय पर मलक्रिया का न होना या आंशिक मल का होना।
  • गेंहू आटा की रोटी लगातार खाते रहना।
  • आँते में मल का चिपके रहना।
  • अत्यधिक ठंडी तासीर का भोजन करने से या ठंडा भोजन करने से।
  • कच्चा सलाद, कच्ची सब्जी, ठंडे पेय पीने से।
  • फेफड़ो के कमजोर होने से मल का बडी आँत से बाहर निकलने में कठिनाई।
  • बड़ी आंतों में सूखापन होने के कारण।
  • कम जल पीना।
  • बिना चबाएं भोजन करना।
  • असमय भोजन करते रहना, इससे शरीर के पाचक एंजाइम कन्फ्यूज और सुस्त पड़ जाते है।
  • बहुत तेजी से भोजन करना।
  • आँते में कीड़े परजीवी का होने से।
  • तैलीय, वसायुक्त और गैस युक्त भोजन करने से।
  • मल मूत्र आदि के वेगों को रोकना, रात्रि जागरण।
  • तनावपूर्ण स्थिति में भोजन करते रहना।
  • देश, काल और ऋतु का पालन न करना।
  • बासी, ठंडा और विकृत भोजन को करते रहने से।
  • गरिष्ठ या भारी भोजन करते रहने और व्यायाम या शारीरिक मेहनत न करने से, जठराग्नि मंद पड़ने लगती है।
  • फाइबर युक्त भोजन न करने से।
  • कुछ ख़ास दवा खाने से, ख़ासकर हाई पावर वाली दवाओं के सेवन करने से।
  • थायरॉइड हार्मोन्स का कम बनाने से।

लक्षण –

जीभ पर सफेद मैल चढ़ जाना, पेट मे दर्द, बडी आँत में सूजन, गुड़गुड़ाहट की ध्वनि, वायु के दबाव होने से ह्र्दय में दर्द, वायु के दबाव से सिर में भारीपन एवं दर्द, शारीरिक शिथिलता, शरीर और पेट में भारीपन, पेट मे अफारा, भोजन के बाद जी मचलाना, भूख का कम लगना, थोड़ी थोड़ी देर में चक्कर आना, आँखों मे जलन, बालों का झड़ना, कमर में दर्द, मुँहू में छाले, बवासीर या फिशर की शिकायत,

मानसिक लक्षण –

चिंता, क्रोध – शोक, भय – लोभ, दुःख, दीनता, अन्न में दोष होने पर भी भोजन करना, ईर्ष्या, तनावपूर्ण स्थिति में रहने से।

उपाय –

  • खाना खाने के एक घंटा बाद त्रिफला अर्क 15 साल से छोटे बच्चों को 5 ml + 10 ml पानी + 1ml अरण्डी का तेल मिलाकर ले, वयस्कों को 25 ml + 40 ml पानी + 5 ml अरण्डी का तेल + एक रत्ती शंक भस्म मिलाकर ले।
  • खाना खाने से पांच मिनट पहले छोटा सा अदरक का टुकड़ा + सेन्दा नमक + नींबू का रस मिलाकर खाये।
  • खाने के 15 मिनट बाद में 15 ml तक्रिस्टा + 15 ml पानी या तक्र मिलाकर ले।
  • खाना खाने के तुरंत बाद सौंफ ले।
  • रात को सोने से पहले नाभि में घी या तेल डाले।
  • अमलताश के चूर्ण का सुभहे क्वाथ ले।
  • यदि रात दूध लेते है, तब सोने से पहले 3 ग्राम त्रिफला चुर्ण(1:1:1) + 5 ग्राम ईसबगोल की भूसी को गर्म दूध के साथ लिया जाए।
  • पुर्नधेनु योग – दोनो वक़्त के भोजन के पाश्चत कम से कम 10 मिनट तक वज्रासन में बैठे।
  • लघु शंक प्रक्षालन – सबसे पहले सुभहे उठते ही, बगैर गैस पास किये, दो गिलास निहार मुँहू गुनगुना सेन्दा नमक मिला हुए पानी को बैठ कर गटागट पियें। पानी पीते ही तुरंत लघु शंक प्रक्षालन की क्रिया करें – पहले ताड़ासन की 10 अवर्ती करें, इसके तुरंत बाद तिर्यक ताड़ासन की 10 आवर्ती करें, इसके तुरंत बाद कटि चक्रासन की 10 आवर्ती करें, इसके तुरंत तिर्यक भुजंगासन की 10 अवर्ती करें, इसके तुरंत बाद उदाराकर्षनासना की 10 अवर्ती करें। इसी बीच शौचालय जाएं, वहां बहुत जोर न लगाएं, चाहे सोच आये या नही आये
  • कुँजन क्रिया और जल नेति – लघु शंक प्रक्षालन के तुरंत बाद कुँजल क्रिया और जल नेति करे।
  • लघु विरेचन – रात को 10 ग्राम त्रिफला चूर्ण( 1:1:1) को 4 कप पानी मे भिगाये, सुभहे मंद मंद आँच पर 1 कप कर ले, इसमे दो या एक चमक अरण्डी का तेल मिलाकर गर्म गर्म पियें। यह केवल सुभहे सुभहे करना है, इसको 3 से 5 दिन लगातार करें। इसमे दिन में दो से पांच बार टॉयलेट जाना पढ़ेगा।( नोट यह क्रिया केवल पहले 5 दिन करनी है)
  • पूर्णधेनु सूक्ष्म आसान (भाग – 2) उत्तानपादासन, चक्र पादासन, पाद संचालन, सुप्त पवनमुक्तासन, सुप्त उदराकर्षणआसन, शव उदराकर्षणआसन, नौकाशन वातनिरोधी आसनों का अभ्यास प्रतिदिन प्रातः करें।
  • सप्ताह के दो वार स्टीम बाथ ले और एक बार तिल के तेल की मसाज करें।
  • मानसिक विचार हेतु – आयुर्वेद में अन्न को ब्रह्म या परमात्मा कहा है। आपको जहाँ भी भोजन करना सबसे अच्छा लगता हो, उसी स्थान की मानसिक कल्पना करके खाना खाने शुरू करना चाहिये, इससे लार स्वाद ग्रंथि या मुँहू में पानी बनेगा, साथ ही अन्न या परमात्मा का आनंद भी मिलेगा। इसी आनंद से प्राण तत्व अन्न के माध्यम से शरीर मे आ जाते है, जिससे शरीर खुद को अधिकतम सीमा तक स्वास्थ कर लेता है।
  • भोजन से संबंधित – भोजन माखन के साथ खाएं, दाल या सब्जी में देशी गाय का घी डाले।
  • भोजन करते वक्त सुखासन( पालथी लगाकर बैठना) रीढ़ की हड्डी सीधी रहे, ताकि सुषुम्ना नाड़ी के जाग्रत होने से हमे वायुमंडल से चैतन्य का स्रोत प्राण तत्व भोजन में अधिक से अधिक प्राप्त किये जा सके। मनुष्य का सुखासन में भोजन करना नैसर्गिक स्वभाव रहा है।भोजन करते समय बातचीत न करें, अंत मे तीन बार कुल्ला करें।
  • भोजन, जितने हमारे मुँहू में दाँत है उतनी बार ही चबाकर खाएं।
  • भोजन के मध्य में पानी ले। पानी सामान्य हो। यदि पानी R O या U V बाला होता है तो उसमें क्षार भस्म और शोधित चुना मिलाकर ले।
  • भोजन के बाद 15 मिनट चले, फिर आधा घंटा आराम करें। रात को बाईं करवट से सोए, सोते वक़्त हमारा सिर पूर्व या दक्षिण की तरफ हो।
  • सप्ताह में एक बार या 15 दिन में एक बार उपवास करें, उपवास में केबल कागज़ी नींबू का रस और सेंदनामक मिलाकर दिन में 4 से 6 बार पियें।

परहेज़(अपथ्य) –

  • सफेद चीनी, सफेद नमक, मैदा, रिफाइंड तेल, तली चीजे, बाजारू चीजें, डब्बा बंद चीजे, फास्ट फूड एवं चाइनीज़ फूड(चिप्स, पिज्जा, बर्गर, मोगो, कोल्डड्रिंक, नुडल्स, जेली, पेस्ट्री, बिस्कुट, आई क्रीम, केक, ब्रेड, जैम, जूस, चॉकलेट- इन सभी मे हाई फुक्टोज कार्न सिरफ कैमिकल पड़ता है, खाने बाले को लत पड़ जाती है) मिठाई, अति जल पान, उड़द, मटर, सेम, आलू, जामुन, दूध, सोयाबीन, फ्रिज़ का ठंडा पानी, गरिष्ठ भोजन न करे।
  • मल मूत्र, प्यास, भूख के वेग को न रोकना, क्रोध, लोभ, शोक, बदबू एवं वीभत्स दृश्य से वचाब रखें।

क्या लेना है(पथ्य) –

सुपाच्य सात्विक भोजन, पुराने पालिश युक्त चावल, मूंग, बथुआ, सहजन की फली, कच्ची मूली, नींबू, आँवला, अदरक, मेथी, जीरा, अनार, घृत, लहसुन, तक्र, दही, कटु व तिक्त पदार्थ(पानी पूरी), पोधिना, हरा धनियां की चटनी।

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Ritin Yogi